करन दे लोगन कों उपहास |
मन क्रम वचन नंदनंदन कों निमिष न छांडो पास || १ ||
सब कुटुंब के लोक चिकनिया मेरे जाने घास |
अब तो जिय एसी बनी आई क्यों मानो लख त्रास || २ ||
अब क्यों रह्यों परें सुन सजनी एक गाम को वास |
ये बातें निकी जानत हें जन परमानंददास || ३ ||
मन क्रम वचन नंदनंदन कों निमिष न छांडो पास || १ ||
सब कुटुंब के लोक चिकनिया मेरे जाने घास |
अब तो जिय एसी बनी आई क्यों मानो लख त्रास || २ ||
अब क्यों रह्यों परें सुन सजनी एक गाम को वास |
ये बातें निकी जानत हें जन परमानंददास || ३ ||
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