या लकुटी अरु कामरिया पर

या लकुटी अरु कामरिया  पर,   राज   तिहूँ   पुरकौ   तजि  डारौं  ।
आठहुं सिध्धि  नवो निधिकौ सुख, नन्द की गाई चराई बिसारौं ।। १ ।।

रसखानि, कबों इन आँखिनसों, ब्रज के बन-बाग़ तड़ाग निहारौं ।
कोटिक हों  कलधौत के धाम,  करील की  कुंजन   ऊपर   बारौं ।। २ ।।

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