तुम मेरे थे मेरे हो मेरे ही रहोगे, बहकूँ न अब बहकाने से

तुम मेरे थे मेरे हो मेरे ही रहोगे, बहकूँ न अब बहकाने से।
जब समझ प्रेम में डूब गई, तब क्या होगा समझाने से॥
दे दी ऐसी विरह वेदना, मिटि जाये मम अहं चेतना।
और अधिक चमकेगा सोना, पुनि पुनि अग्नि तपाने से॥
चाहे मम आलिंगन कर लो, चाहे मम प्रानन ही हर लो।
चाहे जी भर कर तडपा लो, मोहि काम श्याम गुण गाने से॥
तुम हार मान लो बनवारी, बदनाम न हो जाये दासी।
हारोगे हारे हो सब दिन, पछतावोगे इतराने से॥
तू ही तो सब कुछ मेरा है, यह कहा हुआ भी तेरा है।
जग में भी बढता प्यार सदा, पिय के घर आने जाने से॥
लख चौरासी स्वाँग बनाये, नट ज्यों बहुविधि खेल दिखाये।
अब तो अपने पास बुला लो, रीझोगे न रिझाने से।
चुप का मतलब अब समझ लिया, अखिर पिय ने अपना ही लिया।
आशा तो पहले से ही थी, बिनु हेतु कृपालु कहाने से॥

No comments:

Post a Comment