आंगन नन्द के दधिकादो।
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रगटे जग में जादो॥१॥
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयूत।
घरघरते सब गावत आवत भयो महर के पूत॥२॥
वाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दे दान।
जियो जसोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान॥३॥
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पति सुवास।
’मेहा’ आनंद पुंज सुमंगल यह ब्रज सदा हुलास॥४॥
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रगटे जग में जादो॥१॥
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयूत।
घरघरते सब गावत आवत भयो महर के पूत॥२॥
वाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दे दान।
जियो जसोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान॥३॥
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पति सुवास।
’मेहा’ आनंद पुंज सुमंगल यह ब्रज सदा हुलास॥४॥
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