श्री वल्लभ तजि अपुनो ठाकुर

श्री   वल्लभ   तजि अपुनो ठाकुर,   कहो   कौनपें  जैये  हो ।
सब   गुन  पूरन  करुना  सागर,   जहाँ  महारस   पैये   हो ।। १ ।।
सुरत ही देख  अनंग विमोहित, तन मन  प्रान  बिकैये  हो ।
परम उदार चतुर सुख सागर,   अपार  सदा  गुन  गैये   हो ।। २ ।।
सबहिनतें अति उत्तम जानियें,  चरनन   प्रीति   बढेये हो ।
कान न काहू की मन धरिये,   व्रत   अनन्य एक ग्रहिये हो ।। ३ ।।  
सुमिर सुमिर गुन रूप अनुपम, भाव दु:ख सबें बिसरैये हो ।
मुख बिधु लावन्य अमृत इक टक, पीवत नाहिं अघइये हो ।। ४ ।।
चरन कमल की निसदिन  सेवा,   अपने  ह्रदय   बसैये  हो ।
'रसिक' कहै संगीन सों भवो-भव,   इनके   दास  कहैये हो ।। ५ ।।

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