सूर आयो सिर पर, छाया आई पायन तर, पंथी सब झुक रहे, देख छांह गहरी ।
धन्धीजन धन्धौ छांड, रहेरी धूपन के लिये, पशु पंछी जीव जंतु, चिरिया चुप रहरी ।। 1 ।।
व्रज के सुकुमार लोग, दे दे कमार सोवें, उपवन की ब्यारत़ामें, पोढ़े पिय प्यारी ।
सूर अलबेली चल, काहेकूं डरत है, माह की मधरात जैसें, जेठ की दुपहरी ।। 2 ।।
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