सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज

सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज में उलटी आप बिकाई  री |
विन  ग्रथ  मोल  लई  नंदनंदन  सर्वस्व  लिख  दे आई री || १  ||
श्यामल  वरण  कमलदल  लोचन  पीताम्बर कटि फेंट री |
जब ते  आवत  सांकरी   खोरी   भई  हे  अचानक   भेट री || २  ||
कोनकी  हें   कोन    कुलबधू    मधुर   मधुर   हस   बोलेरी |
सकुच रही मोहि उत्तर नहीं आवत वल कर घूंघट खोले री || ३  ||
सास   नणद  उपचार  पचिहारी  काहू  मरम   न   पायो री |
कर गहि  वैद   ढन्ढोर  रहे  मोहि  चिंता    रोग   बतायो री || ४  ||
जा दिन  ते  में   सुरत  संभारी  गृह   अंगना  विष लागे री |
चितवत चलत सोवत और जागत यह  ध्यान मेरे आगें री || ५  ||
नीलमणि  मुक्ताफल  देहूं  जो   मोहि  श्याम   मिलायें री |
कहे   माधो  चिंता  क्यों  विसरे  बिन   चिंतामणि  पायें री || ६  ||

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