अंतःकरण मद्वाक्यं सावधानतया शृणु।
कृष्णात्परं नास्ति दैवं वस्तुतो दोषवर्जितं॥१॥
चाण्डाली चेद्राजपत्नि जाता राज्ञा च मानिता।
कदाचिदपमानेsपि मूलतः का क्षतिर्भवेत॥२॥
समर्पणादहं पूर्वमुत्तमः किं सदा स्थितः।
का ममाधमता भाव्या पश्चातापो यतो भवेत॥३॥
सत्यसंकल्पतो विष्णुर्नान्यथा तु करिष्यति।
आज्ञैव कार्या सततं स्वामिद्रोहोsन्यथा भवेत॥४॥
सेवकस्य तु धर्मोsयं स्वामी स्वस्य करिष्यति।
आज्ञा पूर्व तु या जाता गंगासागर संगमे॥५॥
याsपि पश्चानमधुवने न कृतं तद्द्द्वयं मया।
देहदेश परित्यागस्तृतीयो लोक गोचरः॥६॥
पश्चातापः कथं तत्र सेवकोहं न चान्यथा।
लौकिकप्रभुवत्कृष्णो न द्रष्टव्यः कदाचन॥७॥
सर्व समर्पितं भक्त्या कृतार्थोsसि सुखीभव।
प्रौढापि दुहिता यद्वत् स्नेहान्न प्रेष्यते वरे॥८॥
तथा देहेन कर्त्तव्यं वरस्तुष्यति नान्यथा।
लोकवच्चेत्स्थिर्मे स्यात् किंस्यादितिविचाराय॥९॥
अशक्ये हरिरेवास्ति मोहं मागाः कथञ्चन।
इतिश्री कृष्णदास्य वल्लभस्य हितं वचः॥१०॥
चित्तं प्रति यदाकर्ण्य भक्तो निश्चिंततां व्रजेत॥
॥ इतिश्रीमद्वल्लभाचार्यकृतोअंतःकरणप्रबोधः सम्पूर्णः ॥
कृष्णात्परं नास्ति दैवं वस्तुतो दोषवर्जितं॥१॥
चाण्डाली चेद्राजपत्नि जाता राज्ञा च मानिता।
कदाचिदपमानेsपि मूलतः का क्षतिर्भवेत॥२॥
समर्पणादहं पूर्वमुत्तमः किं सदा स्थितः।
का ममाधमता भाव्या पश्चातापो यतो भवेत॥३॥
सत्यसंकल्पतो विष्णुर्नान्यथा तु करिष्यति।
आज्ञैव कार्या सततं स्वामिद्रोहोsन्यथा भवेत॥४॥
सेवकस्य तु धर्मोsयं स्वामी स्वस्य करिष्यति।
आज्ञा पूर्व तु या जाता गंगासागर संगमे॥५॥
याsपि पश्चानमधुवने न कृतं तद्द्द्वयं मया।
देहदेश परित्यागस्तृतीयो लोक गोचरः॥६॥
पश्चातापः कथं तत्र सेवकोहं न चान्यथा।
लौकिकप्रभुवत्कृष्णो न द्रष्टव्यः कदाचन॥७॥
सर्व समर्पितं भक्त्या कृतार्थोsसि सुखीभव।
प्रौढापि दुहिता यद्वत् स्नेहान्न प्रेष्यते वरे॥८॥
तथा देहेन कर्त्तव्यं वरस्तुष्यति नान्यथा।
लोकवच्चेत्स्थिर्मे स्यात् किंस्यादितिविचाराय॥९॥
अशक्ये हरिरेवास्ति मोहं मागाः कथञ्चन।
इतिश्री कृष्णदास्य वल्लभस्य हितं वचः॥१०॥
चित्तं प्रति यदाकर्ण्य भक्तो निश्चिंततां व्रजेत॥
॥ इतिश्रीमद्वल्लभाचार्यकृतोअंतःकरणप्रबोधः सम्पूर्णः ॥
भावानुवाद- Translation
भावानुवाद- Translation
हे अन्तः करण! मेरे वाक्य को सावधान होकर सुनो - वास्तव में श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई और दोषरहित देवता नहीं है ॥१॥
O my mental faculties (mind, intelligence, ego and
consciousness)! pay attention to what I say. Definitely, there is no greater
and flawless god than Lord Krishna. ॥1॥
निम्न जाति की स्त्री के राजपत्नी और राजा से सम्मानित होने के बाद यदि कभी (राजा से) उसका अपमान हो भी जाए तो वास्तविकता में उसकी कोई क्षति नहीं होती ॥२॥
Let a lower caste woman gets married to a king and
is respected by him. Later, even if, she is sometime disrespected by the king,
actually, her status is not lost.॥2॥
रभु को समर्पण से पहले क्या मैं सदा अच्छी स्थिति में था ? फिर अपनी अधमता का क्या विचार करना जिससे पश्चात्ताप हो ॥३॥
Was I always in good condition, before surrendering
to Lord? So there is no point in repenting over my misery.॥3॥
सत्य संकल्प श्रीविष्णु निश्चय ही कुछ गलत नहीं करेंगे, अतः निरंतर उनकी आज्ञा का पालन ही कर्त्तव्य है, उनके विपरीत कुछ करना उनसे द्रोह करना होगा ॥४॥
Surely, infallible Lord Vishnu will not do anything
wrong, so constantly obeying him is my duty. I will be disloyal to him if I act
against his wishes. ॥4॥
सेवक का यही निश्चित धर्म है, शेष स्वामी स्वयं करेंगे। गंगा और सागर के संगम पर पूर्व में जो आज्ञा हुई थी ॥५॥
This, only is the duty of a devotee. Rest will be
taken care by Lord himself. Earlier, at confluence of the Ganga and the sea,
what he has instructed ॥5॥
और जो आज्ञा बाद में मधुवन में भी हुई थी और मेरे द्वारा जिन दोनों का पालन नहीं हुआ था, वे थीं - शरीर, स्थान और दिखाई देने वाले इस संसार का त्याग ॥६॥
And later, what he has instructed in Madhuvan, I
have not obeyed both of them. Those were - renunciation of this body, place and
the visible world. ॥6॥
इसमें पश्चात्ताप क्या करना, मैं तो केवल उनका सेवक ही हूँ। श्रीकृष्ण को कभी भी सांसारिक भगवान की तरह नहीं देखना चाहिए ॥७॥
Why to repent over it, I am only his devotee. Lord
Krishna should never be looked as a worldly god.॥7॥
भक्तिपूर्वक (प्रभु को) सब समर्पित करके कृतार्थ हो जाओ, सुखी हो जाओ। जिस प्रकार पुत्री के वयस्क होने के बाद भी स्नेह के कारण उसको उसके पति के पास नहीं भेजते हैं ॥८॥
Surrender everything to Lord Krishna with devotion
and become fulfilled and blissful. As daughter is not sent to his husband by
parents even after her maturity due to attachment ॥8॥
उसी प्रकार इस शरीर के साथ नहीं करना चाहिए अन्यथा प्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। यह विचार करो कि यदि इस लौकिक दृष्टि से मुझे परखा जाए तो मेरी स्थिति क्या होगी ॥९॥
her husband will not be happy over it. We should not
act similarly with our body (by not offering it to God). Just think, I
were to be evaluated based on this world idea, where would I be. ॥9॥
मुश्किल स्थितियों में केवल श्रीहरि ही मेरे हैं और मुझे किसी प्रकार मोह न हो। श्रीकृष्ण के दास वल्लभ के इन हितकारी वचनों को मन में धारण कर भक्त को निश्चिन्त होकर रहना चाहिए ॥१०॥
In difficult situations, only Shri Hari is
mine and I should not get deluded. Remember these beneficial words of Vallabh,
a devotee of Lord in your mind and become carefree. ॥10॥
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