हिम ऋतु शिशिर ऋतु अति सुखदाई |
प्यारी जू के फरगुल सोहे प्रीतम ओढ़े सरस कवाई || १ ||
पर गये परदा ललित तिवारी धरी अंगीठी अति सुखदाई |
जरत अंगार धूम अम्बर लों सरस सुगंध रह्यो तहां छाई || २ |
जब जब मधुर सीत तन व्यापत बैठत अंग सों अंग मिलाई |
श्री वल्लभ पद रज प्रताप ते रसिक सदा बलि जाई || ३ ||
प्यारी जू के फरगुल सोहे प्रीतम ओढ़े सरस कवाई || १ ||
पर गये परदा ललित तिवारी धरी अंगीठी अति सुखदाई |
जरत अंगार धूम अम्बर लों सरस सुगंध रह्यो तहां छाई || २ |
जब जब मधुर सीत तन व्यापत बैठत अंग सों अंग मिलाई |
श्री वल्लभ पद रज प्रताप ते रसिक सदा बलि जाई || ३ ||
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