श्री महाप्रभुजी की वधाई
प्रकटे पुष्टि महारस देन ।
श्री वल्लभ हरि भाव अति मुख, रूप समर्पित लेन ।। १ ।।
नित्य संबंध कराय भाव दे, विरह अलौकिक वेन ।
यह प्राकट्य रहत ह्रदय में, तीनलोक भेदन कों जेन ।। २ ।।
रहियें ध्यान सदा ईनके पद, पातक कोऊ लगे न ।
रसिक यह निरधार निगम गति, साधन और नहेन ।। ३ ।।
नित्य संबंध कराय भाव दे, विरह अलौकिक वेन ।
यह प्राकट्य रहत ह्रदय में, तीनलोक भेदन कों जेन ।। २ ।।
रहियें ध्यान सदा ईनके पद, पातक कोऊ लगे न ।
रसिक यह निरधार निगम गति, साधन और नहेन ।। ३ ।।
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