मन हर ले गये नंदकुमार

मन हर ले गये नंदकुमार |
बारक द्रष्टि  परी  चरणन  तन   देखन  न   पायो  बदन   सुचार || १  ||
हों   अपने     घर    सुचसो    बैठी    पोवत ही    मोतिन के   हार |
कांकर   डार  द्वार  व्हे  निकसे   बिसर  गयो  तन  करत शृंगार || २  ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद   प्रभु   ठगीरी  अचानक   मदनगोपाल   भावतों   नाउं || ३  ||

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