मन हर ले गये नंदकुमार |
बारक द्रष्टि परी चरणन तन देखन न पायो बदन सुचार || १ ||
हों अपने घर सुचसो बैठी पोवत ही मोतिन के हार |
कांकर डार द्वार व्हे निकसे बिसर गयो तन करत शृंगार || २ ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद प्रभु ठगीरी अचानक मदनगोपाल भावतों नाउं || ३ ||
बारक द्रष्टि परी चरणन तन देखन न पायो बदन सुचार || १ ||
हों अपने घर सुचसो बैठी पोवत ही मोतिन के हार |
कांकर डार द्वार व्हे निकसे बिसर गयो तन करत शृंगार || २ ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद प्रभु ठगीरी अचानक मदनगोपाल भावतों नाउं || ३ ||
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