काजर वारी गोरी ग्वारि

काजर  वारी   गोरी   ग्वारि,    या   सांवलिया की    लगवारि ।
निसदिन रहत प्रेम रँग भीनीं,   हरि  रसिया  सौं  यारी  कीनीं ।। १ ।।

मदन गुपाल जानि रिझवारी,  नाना  बिधि के करती सिंगारी ।
मिलन काज रहै अंग  अँगोंछै,  सरस  सुगंधन  तेल  तिलोंछै ।। २ ।।

अंजन नांहिं  न भटु यह  दीये,  स्याम  रँग   नैंननि  में  पीये ।
गावति हु जसुमति गृह आवै ,   कृष्ण  चरित बहु गाई सुनावै ।। ३ ।।

सुंदर  स्याम  सुनै  ढिंग आई, चितवति ही चित हरि लै जाई ।
कोऊ कहे  काहू की  न  मानैं,   अपने  मन की  गाई   बखानै ।। ४ ।।

रामराई  प्रभु  यौं  समुझावै,  कही भगवान् कोऊ नीकैं  गावै ।
लखी इन स्याम कहै निरधार, इहि  लगवारनि वहि लगवार ।। ५ ।।

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