बाजन लागे हेली बहुरि ढफ...

बाजन  लागे   हेली   बहुरि  ढफ  बाजन   लागे  हेली  ।

खेलत  मोहन  सांवरो  हो,  किहीं  मिस  देखन जाय ।
सास   ननद   बैरिन  भई  अब,   कीजे  कौन  उपाय ।। १ ।। बहुरि ढफ...

ओजत   गागर    ढारिये,    जमुना    जल के   काज ।
यह मिस बाहर निकस कै हम, जाई मिलैं तज लाज ।। २ ।। बहुरि ढफ...

आवो    बछरा    मेलिये,     बन कौ    दैहीं    बिडारी ।।
वे दै हैं हम  ही   पठेई   हम,  रहेंगी  धरि   द्वै  चारि ।। ३ ।। बहुरि ढफ...

हा हा री  हौं  जाति हौं  मोपै,   नाहिन  परत   रह्यौ ।
तू  तो  सोचत  ही  रही  तैं,  मान्यो  न  मेरो  कह्यो ।। ४ ।। बहुरि ढफ...

राग   रँग   गहगडी   मच्यौ,    नंदराई    दरबार ।
गाय   खेल   हँसी   लिजीये,   फागु   बड़ो    त्यौहार ।। ५ ।। बहुरि ढफ...

तिन  में    मोहन,   अति  बने,   नांचत  सबै ग्वाल ।
बाजे बहु विध   बाजि  ही,   रूंज   मुरज   ढफ   ताल ।। ६ ।। बहुरि ढफ...

मुरली   मुकुट   बिराज   हीं,   कटि   पट   बाँधे  पीत ।
निरतत आवत   ताज के  प्रभु,   गावत   होरी   गीत ।। ७ ।। बहुरि ढफ..

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