प्यारे करुँगी कपोलन लाल, लाल मेरी अंगिया न छुवौ ।। १ ।।
यह अंगिया नहीं धनुष जनक को, छुवत टूट्यो तत्काल ।
नहीं अंगिया गौतम की नारी, छूवत उठी नंदलाल ।। २ ।।
कहा विलोकत भृकुटी कुटिल कर, नहीं ये पूतना ख्याल ।
यह अंगिया काली मत समझो, जाय नाथ्यो पाताल ।। ३ ।।
गिरिवर ऊठाय भयौ गिरिधारी, नहीं जान्यो ब्रजबाल ।
जावौजी खेलौ सखन संग मिली, गौरव के प्रतिपाल ।। ४ ।।
इतनी सुन मुसिकाय सांवरो, लीनौ अबीर गुलाल ।
सूरदास प्रभु निरखि छिरकि अंग,सखियन कियौ निहाल ।। 5 ।।
यह अंगिया नहीं धनुष जनक को, छुवत टूट्यो तत्काल ।
नहीं अंगिया गौतम की नारी, छूवत उठी नंदलाल ।। २ ।।
कहा विलोकत भृकुटी कुटिल कर, नहीं ये पूतना ख्याल ।
यह अंगिया काली मत समझो, जाय नाथ्यो पाताल ।। ३ ।।
गिरिवर ऊठाय भयौ गिरिधारी, नहीं जान्यो ब्रजबाल ।
जावौजी खेलौ सखन संग मिली, गौरव के प्रतिपाल ।। ४ ।।
इतनी सुन मुसिकाय सांवरो, लीनौ अबीर गुलाल ।
सूरदास प्रभु निरखि छिरकि अंग,सखियन कियौ निहाल ।। 5 ।।
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