हों नीके जानतरी आली

(ज्येष्ठ वदि  1 से आषाढ़ सुदी 1 तक गाया  जाता है)

हों नीके जानतरी आली, बहुनायक को नेह ।
कहुं  धूप  कहुं   छांह    जनावत,   कहुं  बादल   कहुं   मेह ।। 1 ।।
वृँदावन   विहरत   गोपीन   संग,   कोऊ  न   जानत   भेह ।
'तानसेन' के प्रभु तुम बहु नायक, छिन आँगन  छिन  गेह ।। 2 ।।

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