(ज्येष्ठ वदी 1 से आषाढ़ सुदी 1 तक गया जाता है)
में नहीं जान्यो माई बहु नायक को नेह ।
मास अषाढ़की घटा घुमड़ आई रिमिझिमी बरखत मेह ।। 1 ।।
काहू त्रियन संग नेह जोर के काहू के आवत प्रात उठ गेह ।
घोंघी के प्रभु रसबस कर लीने बडभागिन जुवती एह ।। 2 ।।
में नहीं जान्यो माई बहु नायक को नेह ।
मास अषाढ़की घटा घुमड़ आई रिमिझिमी बरखत मेह ।। 1 ।।
काहू त्रियन संग नेह जोर के काहू के आवत प्रात उठ गेह ।
घोंघी के प्रभु रसबस कर लीने बडभागिन जुवती एह ।। 2 ।।
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