कहां पढयो प्रहलाद लल़ारे ।
पूछत तात वचन एक मानो तोसों सकल कोटि पच हारे ।। 1 ।।
जो कछु पढ़ावत पांडेसों मोपें पढयो न जाय पिता रे ।
मेरे ह्रुदे नाम नरहरि को कोटि करो तो हूँ टरत न टारे ।। 2 ।।
तब ही क्रोध भयो हिरनावांस पाय क सब जू काय हंकारे ।
बांधो इन ही त्रास दीखायो कहां हे इनके राम रखवारे ।। 3 ।।
अति ही त्रास भयो बालक जिय तब श्रीपति रघुनाथ संभारे ।
सूरदास प्रभु निक स खंभ तें हिरन कश्यप नख उदर बिदारे ।। 4 ।।
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