उठत प्रात उर आनंद भरकें, पीजे शुध्ध जमुना जल निर्मल ।
पान परसत अंग अंग मिटे आरत, सनमुख होत रसना रस निश्चल ।। १ ।।
गोपीजन व्रजवास धर्मकुल, दैवीजन सब आवत हैं चल ।
रहत नहीं दोष सुमरें लक्ष्मण सूत सब, सुख वास चरण दृढ़ के बल ।। २ ।।
त्रिविध ताप मेटन के साधन ए, लपटनों चंदन कर सीतल ।
परमानंद तमाल वल्लभ की, हम पर रहो छाया अति सीतल ।। ३ ।।
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