भोजन करत नंदलाल, संग लिये व्रजबाल

भोजन करत नंदलाल, संग लिये व्रजबाल,
बैठे हैं कालिंदी कुल, चंचल नैन बिसाल ।
छाक भरि लाई थाल, परसपर करत ख्याल,
हंसी हंसी चुंबत गाल, बोलत बचन रसाल ।। 1 ।।
आसपास बैठे, वाम मधि मोहे, घनश्याम जैंवत,
सुख के धाम, रस भरे रसिक लाल ।
विमल चरित करत गान, आज्ञा भई कुंवर कान्ह,
दास कुंभन गावत राग मलार, निरखि भये निहाल ।। 2 ।।


No comments:

Post a Comment