शीतल खसखानो सुहावनो मन मान्यो अमृत रूप अधर आन्यो,
ता मध्य बैठे बालकृष्ण सुनत राग वास बरसानो ।
छूटत हें फुहारे नाना विध होद भरे बादर की छबि कारे कारे,
जामें वर्षा निर्तत मोर अखारे कोकिला सोर करत सुख बरखानों ।। 1 ।।
अतर और गुलाब अरगजा लाग्यो सुगंध समीर वहत मंद मंद,
विजना करत सखी सब साज लिये नेनन सरसानो ।
कबहुक जल ले ले छिरकत शीत लगत मानों केलि करत,
फिरत गावत दोउ तान तरंग व्रजाधीश प्रभु तन मन धन हरखानो ।। 2 ।।
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