वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ

वारि मेरे लटकन पग धरो छतियाँ ।
कमलनयन बलि जाऊ वदनकी,
शोभित नेन्ही नेन्ही दूधकी द्वे दतियाँ॥१॥

यह मेरी यह तेरी यह बाबा नन्दजूकी,
यह बलभद्र भैया की।
यह ताकि जो झूलावे तेरो पलना॥
ईंहां ते चली खुर खात पीवत जल,
परिहरो रुदन हसो मेरे ललना॥२॥

रुनक झूनक बाजत पैजनियाँ,
अलबल कलबल, बोलो मृदु बनियाँ।
परमानंद प्रभु त्रिभुवन ठाकुर,
जाय झूलावे बाबा नंद्जू की रनियाँ॥३॥

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