बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं।
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥
कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥२॥
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥
कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥२॥
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