श्याम कहा चाहतसे डोलत

श्याम कहा चाहतसे डोलत ।
बूजे हुते वदन दूरावत , सुधे बोल ना बोलत ॥१॥

सुने निपट अंधीयारे मंदिर, दधी भाजनमें हाथ ।
अब काहे तुम उत्तर कर हो, कोऊ संग ना साथ ॥२॥

मैं जान्यो यह मेरो घर है , तिही धोखे में आयो ।
देखतही गोरस में चेंटी , काढ्नको कर नायो ॥३॥

सुनत चतुर वचन मोहनके , ग्वालिनी मूर मुस्कानी ।
परमानंद्प्रभू हो रतीनागर , सबे बात हम जानी ॥४॥

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