जाको मन लाग्यो गोपालसों...

राजभोग हिलग के पद

जाको  मन   लाग्यौ  गोपालसों  ताहि   और  कैसे भावैरी |
लै कर  मीन  दूधमें  राखौ,  जल  बिनु  सचु  नहीं  पावैरी || १ ||
ज्यों   सूरा   रन  घूमि  चलत  हैं,  पीर  न काहू  जनावैरी |
ज्यों   गूंगौ गुर  खाय  रहेत  है,  मुख  न  स्वाद  बतावैरी || २ ||
जैसें  सरिता मिली  सिन्धुमें,  उलटि  प्रवाह   न   आवैरी |
तैसेइ  सूर कमल मुख निरखत चित ईत उत न डुलावैरी || ३ || 

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