देखो माई सुंदरता को नीर ।
दादुर मोर पपैया बोलत, नदी जमुना के तीर ।। 1 ।।

कारी घटा आई चहूँदिस तें, कोयल करत पुकार ।
नेंन्ही नेंन्ही बूंदन बरषन लाग्यों, रहे प्रेम पचिहार ।। 2 ।।

कुंडल लोल कपोल बिराजत, झलकत मोतिन माल ।
मुकुट काछिनी और उपरेना, अति बने है गुपाल ।। 3 ।।


बदरा उमगि अँधेरी आई, बिजुरी चमक सोहायो ।
गरजत गगन मृदंग बजावत, चात्रक पीयु पिक गायो ।। 4 ।।


यह छबि निरखि ब्रह्मा सुर, पीतांबर फहरायो ।
सावन मास देखि वरषा ऋतु, 'सूरस्याम' मन भायों ।। 5 ।।

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