हिंडोरे माई झूले गिरिधरलाल ।
संग झूलत वृषभान नंदिनी, बोलत वचन रसाल ।। 1 ।।
पिय शिर पाग कसुंभी शोभित, तिलक बिराजत भाल ।
प्यारी पहेरें कसुंभी चोली, चंचल नयन विशाल ।। 2 ।।
ताल मृदंग बाजे बहु बाजत, आनंद उर न समात ।
श्री वल्लभ पदरज प्रतापतें, निरख रसिक बल जात ।। 3 ।।
संग झूलत वृषभान नंदिनी, बोलत वचन रसाल ।। 1 ।।
पिय शिर पाग कसुंभी शोभित, तिलक बिराजत भाल ।
प्यारी पहेरें कसुंभी चोली, चंचल नयन विशाल ।। 2 ।।
ताल मृदंग बाजे बहु बाजत, आनंद उर न समात ।
श्री वल्लभ पदरज प्रतापतें, निरख रसिक बल जात ।। 3 ।।
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