नीकी लागत शीत की ऋतु |
अंकन दै पिय प्यारी पौढ़े, बात करत रस रीत की || १ ||
बन गई एक रजाई भीतर, होत परस्पर जीत की ||
गदाधर प्रभु हेमंत मनावत, चाह बढ़ी नव प्रीत की || २ ||
अंकन दै पिय प्यारी पौढ़े, बात करत रस रीत की || १ ||
बन गई एक रजाई भीतर, होत परस्पर जीत की ||
गदाधर प्रभु हेमंत मनावत, चाह बढ़ी नव प्रीत की || २ ||
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