निकी लागत शीत की ऋतु...

नीकी लागत शीत की ऋतु |
अंकन दै पिय प्यारी पौढ़े,  बात  करत रस रीत की || १  ||
बन गई एक रजाई भीतर,  होत  परस्पर  जीत की ||
गदाधर प्रभु हेमंत मनावत, चाह  बढ़ी नव प्रीत की || २  ||

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