चंदन अरगजा ले आई, बाल लाल के अंग लगावन ।
सुगंध गुलाब जल ता मध्य कपूर डारि, अंजुली भर भर लेपत गात, लागत पवन चढावन ।। 1 ।।
नाना बहु भांतन के कुसुमन सों शैया रची मची सुवास बसी, प्रीतम मन भावन ।
मुरारीदास प्रभु ग्रीष्म ऋतु दाह तपत, तैसेई लागि सारंग राग गावन ।। 2 ।।
सुगंध गुलाब जल ता मध्य कपूर डारि, अंजुली भर भर लेपत गात, लागत पवन चढावन ।। 1 ।।
नाना बहु भांतन के कुसुमन सों शैया रची मची सुवास बसी, प्रीतम मन भावन ।
मुरारीदास प्रभु ग्रीष्म ऋतु दाह तपत, तैसेई लागि सारंग राग गावन ।। 2 ।।
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