घरतें छाक ले आई ग्वालन ।
दूरतें ग्वालिन, मोहन देखी, नेनन सेन बुलाई ।। 1 ।।
सखा संग कोऊ नहीं स्याम के, गये चरावन गाई ।
जब एकांत, देख मोहन को, ग्वालिनी मन मुसिकाई ।। 2 ।।
दोउ हिलमिल छाक अरोगत, बैठ कदम की छाँही ।
रहस्य निकुंज, भवन की लीला, का पे बरनी न जाई ।। 3 ।।
सिव सनकादिक नारद सारद, उनहु न देत दिखाई ।
हरिनारायण श्यामदास के प्रभु माई, गोपी महा निधि पाई ।। 4 ।।
दूरतें ग्वालिन, मोहन देखी, नेनन सेन बुलाई ।। 1 ।।
सखा संग कोऊ नहीं स्याम के, गये चरावन गाई ।
जब एकांत, देख मोहन को, ग्वालिनी मन मुसिकाई ।। 2 ।।
दोउ हिलमिल छाक अरोगत, बैठ कदम की छाँही ।
रहस्य निकुंज, भवन की लीला, का पे बरनी न जाई ।। 3 ।।
सिव सनकादिक नारद सारद, उनहु न देत दिखाई ।
हरिनारायण श्यामदास के प्रभु माई, गोपी महा निधि पाई ।। 4 ।।
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