ग्वालिन घरतें कौन बुलाई ।
जाय जिमावो, अपने पतिको, यहां क्योंरी तुम आई ।। 1 ।।
यह मर्यादा वेदकी नाहीं, करो अपनी मन भाई ।
निज पति छांड, औरनको चाहत, यह तुम कौन बताई ।। 2 ।।
दीन बचन ग्वालिन बोली हम, सुत पति छांडके आई ।
जान्यो, मनमोहन, भूखे हैं, अखिल लोकके राई ।। 3 ।।
बचन सुनत मोहन मुस्काने, कर गहि हृदे लगाई ।
दोउ संग मिली, छाक अरोगत, 'दास' निरख बलि जाई ।। 4 ।।
जाय जिमावो, अपने पतिको, यहां क्योंरी तुम आई ।। 1 ।।
यह मर्यादा वेदकी नाहीं, करो अपनी मन भाई ।
निज पति छांड, औरनको चाहत, यह तुम कौन बताई ।। 2 ।।
दीन बचन ग्वालिन बोली हम, सुत पति छांडके आई ।
जान्यो, मनमोहन, भूखे हैं, अखिल लोकके राई ।। 3 ।।
बचन सुनत मोहन मुस्काने, कर गहि हृदे लगाई ।
दोउ संग मिली, छाक अरोगत, 'दास' निरख बलि जाई ।। 4 ।।
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