नई ऋतु को आगम भयो सजनी

नई  ऋतु को   आगम   भयो   सजनी,   बिदा   होत   हेमंत |
इन  बिरहिन के  भाग्य  तें  सजनी,   आवत  चल्यौ  बसंत || १  ||
अब फूलें है नये द्रुम बेली,  कामिनी के  मन  अति ही हसंत |
कृष्णदास प्रभु रस बस कर लीनो, सीतकाल कौ आयौ अंत || २  ||

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