मेरे तन की तपत बुझाई ।
बीदा भई ग्रीषम ऋतु आली अब बरखा ऋतु आई ।। 1 ।।
जब मेरे गृह आवेंगे गिरिधर तब हों नीके करूंगी बधाई ।
नाना विध के साज सिंगारौं बिरहनी पीर मिटाई ।। 2 ।।
शुभ मंगल आज कुंज भवन में पोहोप सुवास सुगंध छवाई ।
'चतुर्भुज' प्रभु मेरे भवन में पधारो वासों तन विसराई ।। 3 ।।
बीदा भई ग्रीषम ऋतु आली अब बरखा ऋतु आई ।। 1 ।।
जब मेरे गृह आवेंगे गिरिधर तब हों नीके करूंगी बधाई ।
नाना विध के साज सिंगारौं बिरहनी पीर मिटाई ।। 2 ।।
शुभ मंगल आज कुंज भवन में पोहोप सुवास सुगंध छवाई ।
'चतुर्भुज' प्रभु मेरे भवन में पधारो वासों तन विसराई ।। 3 ।।
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