जागत रैंन गई, पिया बिन जागत रैंन गई।
अवधि वदी गए, अजहू न आये, बड़ी बेर भयीं॥१॥
कछु कहत हो, करत कछु और, कौन सीख दई।
सांच नही तेरो एको अंग, कहाँजू रीत लई॥२॥
कैसे कीजे विश्वास, भये हो विषई।
रसिक प्रीतम रावरी, छीन छीन गती नई॥३॥
अवधि वदी गए, अजहू न आये, बड़ी बेर भयीं॥१॥
कछु कहत हो, करत कछु और, कौन सीख दई।
सांच नही तेरो एको अंग, कहाँजू रीत लई॥२॥
कैसे कीजे विश्वास, भये हो विषई।
रसिक प्रीतम रावरी, छीन छीन गती नई॥३॥
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