भोग सिंगार मैया सुनी मोकों श्री विठ्ठलनाथ के हाथको भावै |
नीकें न्ह्वाई सिंगार करत है, आछी रुचिसों मोहिं पाग बंधावै || १ ||
तातें सदा हों उहांही रहत हों , तू डरी माखन दूध छिपावै |
छीतस्वामी गिरिधर श्री विठ्ठल, निरखि नैन त्रय ताप नसावै || २ ||
नीकें न्ह्वाई सिंगार करत है, आछी रुचिसों मोहिं पाग बंधावै || १ ||
तातें सदा हों उहांही रहत हों , तू डरी माखन दूध छिपावै |
छीतस्वामी गिरिधर श्री विठ्ठल, निरखि नैन त्रय ताप नसावै || २ ||
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