व्रतचर्या के पद
अति तप देख कृपा हरि कीनो |तनकी जरन दूर भई सबकी मिल तरुणी सुख दीनो || १ ||
नवलकिशोर ध्यान युवती मन मीडत पीठ जनायो |
विवश भई कछु सुधि न संभारत भयो सबन मन भायो || २ ||
मनमन कहत भयो तप पूरण आनंद उर न समाई |
सूरदास प्रभु लाज न आवत युवतीन मांझ कन्हाई || ३ ||
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