जसुमति लालको बदन दिखैयें

जसुमति लालको बदन दिखैयें ।
भोर उठत आय देखत मुख, निरखत ही सचु पैयें ।। 1 ।।
उमड़ रही घटा चहुँ दिशतें, बेग तुरत उठ घैयें ।
परमानंद प्रभु उठे तुरत ही, निरख मुखारविंद बलजैयें ।। 2 ।।

No comments:

Post a Comment