धूरि-भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी ।
खेलत-खात फिरैं अंगनां, पगपैजनी बाजतीं, पीरी कछोटी ।। १ ।।
वा छबि कों रसखानि बिलोकत, बारत कामकलानिधि-कोटी ।
काग के भाग कहा कहिए, हरी-हाथसों लै गयो माखन-रोटी ।। २ ।।
खेलत-खात फिरैं अंगनां, पगपैजनी बाजतीं, पीरी कछोटी ।। १ ।।
वा छबि कों रसखानि बिलोकत, बारत कामकलानिधि-कोटी ।
काग के भाग कहा कहिए, हरी-हाथसों लै गयो माखन-रोटी ।। २ ।।
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