धूरि-भरे अति सोभित स्यामजू..

धूरि-भरे अति सोभित स्यामजू,  तैसी  बनी सिर सुन्दर चोटी ।
खेलत-खात फिरैं अंगनां,   पगपैजनी  बाजतीं,  पीरी  कछोटी ।। १ ।।
वा छबि कों रसखानि बिलोकत, बारत कामकलानिधि-कोटी ।
काग के भाग कहा कहिए,  हरी-हाथसों  लै  गयो माखन-रोटी ।। २ ।।

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