तेरे मन की बात कौन जानेरी |
जोपें डर होई तो नंदसून बोले, ऐसी कौन युवती जो न मानेरी || १ ||
तेरी अरु हरि की मिलिये चलती है माई, यह बूझ परत है जिय अपनेरी |
कुंभनदास प्रभु गिरिधरन मोहन, यह व्रज युवती औरन गिनेरी || २ ||
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