आज नन्दलाल मुखचंद नयनन निरख, परम मंगल भयो, भवन मेरे |
कोटि कंदर्प लावण्य एकत्र कर, वारु तब ही जब, नेक हेरे || १||
सकल सुख सदन हरषित वदन गोपवन, प्रबलदल मदनदल, संग घेरे |
कहो कोऊ कैसेंहूँ नहीं सुधबुध बने, गदाधर मिश्र, गिरिधरन टेरें || २ ||
कोटि कंदर्प लावण्य एकत्र कर, वारु तब ही जब, नेक हेरे || १||
सकल सुख सदन हरषित वदन गोपवन, प्रबलदल मदनदल, संग घेरे |
कहो कोऊ कैसेंहूँ नहीं सुधबुध बने, गदाधर मिश्र, गिरिधरन टेरें || २ ||
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