निरख सुख उपजत श्री यमुनाजी, सन्मुख वृंदा विपिन सुहाये |
श्री विश्रांत श्री वल्लभ जुकी बैठक, निर्मल जल यमुना के नहाये || १ ||
भुज तरंग सोहत अति नीके, भंवर कंकण सिराये |
व्रजपति केलि कहा कवि वरणे, शेष सहस्र सुख पार न पाये || 2 ||
श्रमजल सहित अगाध महा रस, लीला सिंधु तरंगन छाये |
सकल सिध्धि अलौकिक दाता, जे जन ताकि चरनन चित्त लाये || ३ ||
रवि मंडल द्वारा होय प्रकटी, गिरि कलिंद शिरतें ब्रज धाये |
'हरिदास' प्रभु शोभा निरखत मन कर्म वचन इनके गुण गाये || ४
श्री विश्रांत श्री वल्लभ जुकी बैठक, निर्मल जल यमुना के नहाये || १ ||
भुज तरंग सोहत अति नीके, भंवर कंकण सिराये |
व्रजपति केलि कहा कवि वरणे, शेष सहस्र सुख पार न पाये || 2 ||
श्रमजल सहित अगाध महा रस, लीला सिंधु तरंगन छाये |
सकल सिध्धि अलौकिक दाता, जे जन ताकि चरनन चित्त लाये || ३ ||
रवि मंडल द्वारा होय प्रकटी, गिरि कलिंद शिरतें ब्रज धाये |
'हरिदास' प्रभु शोभा निरखत मन कर्म वचन इनके गुण गाये || ४
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