चैत्रमास संवत्सर परिवा, नयो परव मान्यो हे आज

चैत्रमास संवत्सर परिवा, नयो परव मान्यो हे आज ।
नूतन लाड, लड़ावत सब विधि,  श्रीवल्लभ श्रीविठ्ठल महाराज ॥ १ ॥

नये बसन मनिगन आभूषण,  धरत असन नये रूचि उपजाय ।
अचमन  करि,  मुख पोंछि बसनतें, बीरी देत सुगंध मिलाय ॥ २ ॥

विविध फूलमंडली मनोहर, आँगन मोतिन चोक पुराय ।
आरती करत जु, मात यशोदा,  न्योछावर करि अति सचुपाय ॥ ३ ॥

नवदल निम्ब मधुर मिश्री ले, देत सबनकों मन हरखाय ।
ब्रह्मदासकों, माला बीडा देत, प्रभु अति निकट बुलाय ॥ ४ ॥

No comments:

Post a Comment