श्री गोवर्धन राई लाला, प्यारे लाल तिहारे चंचल नैन बिशाला,
तिहारे उर सोहै बनमाला, देख मोहि रही ब्रजबाला ।। ध्रु.।।
खेलति खेलति तहँ गये जहँ पनिहारिन की बाट ।
गागरि ढ़ोरें सिस तै कोऊ भरनि न पावति घाट ।। १ ।।
नंद राइ के लाडिले बलि ऐसौ खेली निवारि ।
मनमें आनंद भरी रह्यौ मुख जोवत सकल ब्रज नारि ।। २ ।।
अरगजा कुमकुम घोरी कें प्यारी लीनो कर लपटाई ।
अचका अचका आई कें भाजी गिरिधर गाल लगाई ।। ३ ।।
यह बिधि होरी खेली हीं ब्रजबासिन संग लगाई ।
गोवर्धन धर रूप पै जन गोविंद बलि बलि जाई ।। ४ ।।
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