जागि हो लाल, गुपाल, गिरिवरधरन, सरस ऋतुराज बसंत आयौ ।
फूले द्रुमवेली, फल, फूल, बौरे, अंब, मधुप, कोकिला कीर सैन लायौ ।। १ ।।
जावौ खेलन, सबै ग्वाल टेरत द्वार, खाऊ भोजन मधु, घृत मिलायौ ।
सखी - जूथन लियें आई है राधिका मच्यौ गहगड़राग रंग छायौ ।। २ ।।
सुनति मृदु-बचन, उठे चौंक नंदलाल, कर लीयें पिचकाई सुबल बुलायौ ।
निरखि मुख, हरखि हियैं, वारि तन मन प्रान, सूर येही मिसहि गिरिधर जगायौ ।। ३ ।।
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