श्रीनाथजी के मन्दिर में दर्शनीय स्थल
प्रभु
श्रीनाथजी के मन्दिर परिसर
में ही
कई दर्शनीय स्थल हैं। प्रभु
श्रीनाथजी का मन्दिर अन्य मन्दिरों
के समान
गुम्बजों,
शिखरों वाला
न होकर
साक्षात श्रीनंदबाबा
की हवेलीनुमा
बना हुआ
है। श्रीनाथजी
के निज
मन्दिर के
उपर आज
भी केलूपोश
छत है
जहॉं श्रीचक्रराज
सुदर्शनजी का स्वरूप बिराजमान
है।
1 निकुंज नायक श्रीनाथजी का निज मंदिर
1 निकुंज नायक श्रीनाथजी का निज मंदिर
2 मणि कोठा
(जहॉं कीर्तनकार
हवेली संगीत
का कीर्तन
गान करने
एवं श्रीछडीदारजी
अपनी छडी
एवं अन्य सेवकगणों
के साथ
प्रभु सेवा
के लिए
खडे रहते
हैं।
3 गोल
देहरी (देहली)
जहॉं से
निज मन्दिर के
लिए भेंट
चढाई जा
सकती है।
4 डोल
तिबारी (जहॉं
पर खडे
हो हम
प्रभु श्रीनाथजी
के दर्शन
कर सकते
हैं।)
5
कीर्तनिया गली (जहॉं कीर्तनकार अपने
साज आदि
रखते हैं
व दर्शन
के पूर्व
व पश्चात मधुर
राग रागिनीयों
का गान
करते हैं।
6 श्रीचक्रराज
सुदर्शनजी (जो साक्षात भगवान विष्णु का
ही स्वरूप माना
जाता है
एवं जहाँ ध्वजा फहराई जाती
है एवं
श्रीचक्रराज सुदर्शनजी को राजभोग के
दर्शनों के
समय इत्र
एवं प्रसाद
(खाजा/मठरी)
का भोग
लगाया जाता
है।
7. श्रीनाथजी
का मंदिर पुष्टिमार्ग
में एक
मात्र ऐसा
मन्दिर
है जहॉं ध्वजा फहराई जाती
है।
8 रतन
चौक (जहॉं
हम दर्शन
के लिए
डोल तिबारी
में प्रवेश
कर सकते
हैं। ( यहॉं
एक ताला
लगा हुआ
है, जिसे वैष्णव
भक्तजन स्वामिनीजी स्वरुप मान छूकर
अपने को धन्य मानते हैं।
ऐसी मान्यता है
कि प्रभु
श्रीनाथजी ने साक्षात इसे छुआ
था। इसी स्थान पर दीपावली
पर भव्य कांच की हटडी
का मनोरथ
होता है,
जिसमें श्रीनवनीतप्रियजी
बिराजते हैं।)
9 कमल
चौक (चौक
के मध्य मार्बल
से कमलाकार
बना हुआ
है, एवं
प्रभु श्रीनाथजी
के रास
स्थल
के रूप
में जाना
जाता है।)
10 समाधान
विभाग कमल
चौक के
पास ही
है जहाँ
मन्दिर में
मनोरथ एवं
भेंट आदि
के राशि
जमा कर
रसीद प्राप्त की जा सकती
है।
11 ध्रुव
बारी यहीं
पर से
मुगल सम्राट
औरंगजेब ने
प्रभुश्रीनाथजी का चमत्कार माना
अपनी धृष्टता छोड
दर्शन प्राप्त किये
थे। इस स्थान पर मनौती स्वरुप नारियल बॉंधे
जाते हैं
।
12 अनार
चोक यहॉं
से कीर्तनिया
गली में
प्रवेश किया
जाता है।
13 प्रसादी भंडार (जहॉं से
मन्दिर का
प्रसाद प्राप्त किया
जा सकता
है। (विशेष
सूचना :- पुष्टिमार्गीय
परम्परा
एवं मर्यादा
के अनुसार
श्रीनाथजी के भोग की समस्त सामग्री
मन्दिर के
अन्दर
ही बनती
है, जो
सेवको द्वारा
स्वच्छता के
साथ पवित्रता
से बनाई
जाती है।
मन्दिर में
सूखे मेंवें,
केसर, इलायची,
शक्कर,
अनाज, दालें
एवं अन्य भेंट
किये जा
सकते हैं।)
14 आरती
एवं चरणामृत
का स्थान
15 खासा भंडार
जहॉं भोग
के लिए
सामग्री एकत्रित
कर उसे
पवित्र किया
जाकर मन्दिर की
रसोई में
जाती है।
16 पानघर
प्रभु श्रीनाथजी
को पान
अत्यन्त प्रिय
है और
इस हेतु
पूरा पानघर
बना हुआ
है, जहौं
विशेष विधि
से गीली
सुपारी चक्की में
बारीक पीस
एवं तैयार
कर चूना
कत्था
के साथ
पान का
बीडा बनाया
जाता है।
यही बीडा
प्रसादी रूप
में ठाकुर
जी को
धराया जाता
है। और
वेष्णवों
को प्राप्त होता
है।
17 फूलघर
ठाकुरजी के
श्रृंगार हेतु
विविध फूलों
के बिना
कल्पना
ही नहीं
की जा
सकती है।
भॉंति भाँति
के फूल
गुलाब, मोगरा,
चमेली, चंपा
आदि के
कई मन
फूल नित्य सेवा
में काम
में लिये
जाते हैं।
18 शाकधर
यहॉं ठाकुरजी
की सेवा
के लिए
वैष्णव
शाक भाजी
की सेवा
कर रसोई
में भेजने
योग्य
बनाते हैं।
19 पातलघर
श्रीठाकुरजी की सेवा के लिए
विविध बर्तन
एवं अन्य सामग्री
यहॉं से
उपलब्ध
कराई जाती
है।
20 मिश्रीघर
यहॉं श्रीठाकुरजी
की सामग्री
के लिए
मिश्री व
अन्य
सामग्री की
सेवा धराई
जाती है।
21 पेडाघर
गंगामाटी व
चंदन व
गंगा, यमुना
जल मिश्रित
पेडे सेवा
में धराने
के लिए
यहीं पर
तैयार होते
हैं।
22 दूधघर
यह विशेष
स्थान
है जहॉं
पर रसोई
एवं अन्य के लिए दूध
की सामग्री
इत्यादि
तैयार होती
है।
23 खरासघर
यहॉं गेहूँ
इत्यादि
अनाज पीस
कर तैयार
किया जाता
है।
24 श्रीगोर्वद्धनपूजा
का चौक
यहॉं दीपावली
एवं अन्नकूट के
दिन भव्य मनोरथ
होता है
एवं दर्शनों
के लिए
प्रवेश द्वार
यहीं से
हैं।
25 सूरजपोल
यहीं पर
नवधा भक्ति
की प्रतीक
नौ सिढियां
बनी हुई
है और
हम यहीं
से रतन
चौक में
प्रवेश कर
निज मन्दिर
की और
अलभ्य
लाभ लेने
को जाते
हैं।
26 सिंहपोल
यहां से
कमल चौक
में प्रवेश
किया जा
सकता है।
27 धोली
पटिया ये
स्थान
श्रीरसागर स्वरूप माना गया
है। सिंह
पोल यहीं
स्थित है।
28 वाचनालय
धोली पटिया
पर स्थित
है जहॉं
हम पुष्टिमार्गीय
साहित्य
प्राप्त
कर सकते
हैं साथ
ही यहॉं
वार्ता श्रवण
भी कर
सकते हैं।
29 श्रीलालाजी
का मन्दिर
यहॉं विभिन्न वैष्णव भक्तों द्वारा
पुष्टिकृत ठाकुरजी पधराये गये हैं।
30 श्रीनवनीतप्रियजी का मन्दिर श्रीनाथजी का प्रतिनिधि स्वरूप जो लड्डूगोपाल का स्वरूप है। मन्दिर के विभिन्न भागों में सभी बडे मनोरथों में श्रीनवनीतप्रियजी का स्वरूप ही पधराया जाता है। श्रीनाथजी का स्वरूप अचल है।
31 श्री कृष्ण भण्डार मन्दिर से सम्बन्धित समस्त सेवा कार्यों के लिए यहीं से कार्यवाही होती है। यहीं पर बहुमूल्य धातु एवं अन्य कीमती रत्न आदि भेंट किये जा सकते हैं
32 सोने चॉंदी की चक्की श्री ठाकुरजी की सेवा के लिए प्रतिदिन इतनी केसर कस्तूरी की आवश्यकता होती है कि उसे पीसने के लिए चक्की की आवश्यकता पडती है।
33 श्रीमहाप्रभुजी की बैठक श्रीमदवल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी की बैठक के दर्शन कर सकते हैं। यहीं पर मनोरथ इत्यादि कराने वालो का समाधान (प्रसादी उपरना वस्त्र ओढाकर) किया जाता है।
34 श्री खर्च भण्डार यह एक अवर्णनीय स्थान है जिसकी महिमा का बखान जितना किया जाए कम है। यहीं पर श्रीठाकुरजी की सेवा के लिए अनाज शुद्ध देशी घी का संग्रह किया जाता है (मन्दिर में सामग्री भोग बनाने में सिर्फ शुद्ध देशी घी का ही प्रयोग होता है।) इसी स्थान पर प्रभु श्रीनाथजी के रथ का पहिया रूक गया था और आज भी उस स्थान पर श्रीठाकुरजी की चरण चौकी बनी हुई है। इस स्थान की मान्यता है कि यहॉं सिफं खर्च होता है, कभी खत्म नहीं होता है, देने वाला श्रीनाथजी, पाने वाला श्रीनाथजी। पता नहीं कहॉं कहॉं से वैष्णव श्रृद्धालु गुमनाम भेंट भेजते रहते हैं और श्रीठाकुरजी के दिन प्रतिदिन के मनोरथों को प्रसाद भोग तैयार होता है। यहॉं पर शुद्ध घी संगंह के लिए इतने कुए बने हुए हैं।
35 भीतर की बावडी यहॉं से निज मन्दिर एवं रसोईघर के लिये पवित्र जल जाता है।
36 मोती महल प्रधान पीठाधीश गोस्वामी तिलकायत 108 श्री राकेशजी महाराज श्री का आवास जो महलनुमा बना हुआ है।
37 धूपघडी मोतीमहल की छत पर ही प्राचीन धूपघडी बनी हुई है।
38 घडी इसी के पास प्राचीन घडी भी है जो लकडी एवं रस्सी के यंत्रो से चलती है।
39 श्री पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत शिक्षणशाला यहॉं पर एक अलौकिक संगीत की विधा की शिक्षा प्रदान की जाती है जा संगीत की दुनिया में हवेली संगीत के नाम से पहचानी जाती है।
40 श्री पुष्टिमार्गीय पुस्तकालय यहॉं पर प्राचीन हस्तलिखित एवं मुद्रित कई अमूल्य ग्रथ उपलब्ध हैं।
41 नक्कारखाना यहॉं दर्शनों के समय नक्कारे एवं शहनाई का मधुर वादन चलता रहता है। एवं दर्शन आदि की घोषणा होती है।
42 नक्कार खाना दरवाजा इस मुक्ष्य द्वार से ही मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। इसी के उपर नक्कारखाना बना हुआ है।
43 लाल दरवाजा यह दरवाजा श्रीखर्चभण्डार के पास बना हुआ है। जो रात्रि के समय बन्द रहता है, इसी दरवाजे के पास मुगलों के द्वारा ली गई शपथ का शिलालेख लगा हुआ है।
30 श्रीनवनीतप्रियजी का मन्दिर श्रीनाथजी का प्रतिनिधि स्वरूप जो लड्डूगोपाल का स्वरूप है। मन्दिर के विभिन्न भागों में सभी बडे मनोरथों में श्रीनवनीतप्रियजी का स्वरूप ही पधराया जाता है। श्रीनाथजी का स्वरूप अचल है।
31 श्री कृष्ण भण्डार मन्दिर से सम्बन्धित समस्त सेवा कार्यों के लिए यहीं से कार्यवाही होती है। यहीं पर बहुमूल्य धातु एवं अन्य कीमती रत्न आदि भेंट किये जा सकते हैं
32 सोने चॉंदी की चक्की श्री ठाकुरजी की सेवा के लिए प्रतिदिन इतनी केसर कस्तूरी की आवश्यकता होती है कि उसे पीसने के लिए चक्की की आवश्यकता पडती है।
33 श्रीमहाप्रभुजी की बैठक श्रीमदवल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी की बैठक के दर्शन कर सकते हैं। यहीं पर मनोरथ इत्यादि कराने वालो का समाधान (प्रसादी उपरना वस्त्र ओढाकर) किया जाता है।
34 श्री खर्च भण्डार यह एक अवर्णनीय स्थान है जिसकी महिमा का बखान जितना किया जाए कम है। यहीं पर श्रीठाकुरजी की सेवा के लिए अनाज शुद्ध देशी घी का संग्रह किया जाता है (मन्दिर में सामग्री भोग बनाने में सिर्फ शुद्ध देशी घी का ही प्रयोग होता है।) इसी स्थान पर प्रभु श्रीनाथजी के रथ का पहिया रूक गया था और आज भी उस स्थान पर श्रीठाकुरजी की चरण चौकी बनी हुई है। इस स्थान की मान्यता है कि यहॉं सिफं खर्च होता है, कभी खत्म नहीं होता है, देने वाला श्रीनाथजी, पाने वाला श्रीनाथजी। पता नहीं कहॉं कहॉं से वैष्णव श्रृद्धालु गुमनाम भेंट भेजते रहते हैं और श्रीठाकुरजी के दिन प्रतिदिन के मनोरथों को प्रसाद भोग तैयार होता है। यहॉं पर शुद्ध घी संगंह के लिए इतने कुए बने हुए हैं।
35 भीतर की बावडी यहॉं से निज मन्दिर एवं रसोईघर के लिये पवित्र जल जाता है।
36 मोती महल प्रधान पीठाधीश गोस्वामी तिलकायत 108 श्री राकेशजी महाराज श्री का आवास जो महलनुमा बना हुआ है।
37 धूपघडी मोतीमहल की छत पर ही प्राचीन धूपघडी बनी हुई है।
38 घडी इसी के पास प्राचीन घडी भी है जो लकडी एवं रस्सी के यंत्रो से चलती है।
39 श्री पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत शिक्षणशाला यहॉं पर एक अलौकिक संगीत की विधा की शिक्षा प्रदान की जाती है जा संगीत की दुनिया में हवेली संगीत के नाम से पहचानी जाती है।
40 श्री पुष्टिमार्गीय पुस्तकालय यहॉं पर प्राचीन हस्तलिखित एवं मुद्रित कई अमूल्य ग्रथ उपलब्ध हैं।
41 नक्कारखाना यहॉं दर्शनों के समय नक्कारे एवं शहनाई का मधुर वादन चलता रहता है। एवं दर्शन आदि की घोषणा होती है।
42 नक्कार खाना दरवाजा इस मुक्ष्य द्वार से ही मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। इसी के उपर नक्कारखाना बना हुआ है।
43 लाल दरवाजा यह दरवाजा श्रीखर्चभण्डार के पास बना हुआ है। जो रात्रि के समय बन्द रहता है, इसी दरवाजे के पास मुगलों के द्वारा ली गई शपथ का शिलालेख लगा हुआ है।
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