गावत मल्हार पिय आये मेरे आंगन कहा नौछावर करूँ यही ओसर ।
तन मन प्रान एक रोम पर वार डारुं तोऊ न करत या कृपा की सरवर ।। 1 ।।
सुफल करी आज रेन किये अब सुख सेन मुख हू न आवे बेन उमग चल्यो हियो भर ।
रसिक प्रीतम प्रेम विवास भये श्री वल्लभ प्रभु रसिक पुरंदर ।। 2 ।।
तन मन प्रान एक रोम पर वार डारुं तोऊ न करत या कृपा की सरवर ।। 1 ।।
सुफल करी आज रेन किये अब सुख सेन मुख हू न आवे बेन उमग चल्यो हियो भर ।
रसिक प्रीतम प्रेम विवास भये श्री वल्लभ प्रभु रसिक पुरंदर ।। 2 ।।
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