जो सुख होत गोपालें गायें

जो सुख होत गोपालें गायें ।
सो न होत जपतप व्रत संयम, कोटिक तीरथ न्हायें ।। 1 ।।
गदगद गिरा लोचन जलधारा, प्रेमपुलक तनुछायें ।
तिनलोक सुख तृणवत लेखत, नंदनंदन उर आयें ।। 2 ।।
दियें नहीं लेत चार पदारथ, श्रीहरिचरण अरूझायें ।
सूरदास गोविंद भजनबिन, चित नहीं चलत चलायें ।। 3 ।।

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